पहलगाम की घटना को नजरअंदाज नहीं कर सकते: जम्मू-कश्मीर राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, 14 अगस्त 2025: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश से पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, “पहलगाम में जो हुआ, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।” यह बयान मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने दिया, जो जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति और राज्य के दर्जे की मांग पर विचार कर रही थी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से आठ सप्ताह में जवाब मांगा है, जिससे इस मामले में और चर्चा की उम्मीद है।
पहलगाम में क्या हुआ?
पहलगाम, जो जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में एक खूबसूरत पर्यटक स्थल है, हाल ही में आतंकी हमले का गवाह बना। इस हमले ने पूरे क्षेत्र में सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में इस घटना का जिक्र करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने से पहले वहां की जमीनी स्थिति पर विचार करना जरूरी है। कोर्ट का यह बयान दर्शाता है कि क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा के मुद्दे इस मांग को प्रभावित कर सकते हैं।
याचिका का बैकग्राउंड
यह याचिका अक्टूबर 2024 में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन द्वारा दायर की गई थी, जिसमें जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की गई थी। 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित कर दिया था। तब से, स्थानीय नेता और संगठन लगातार पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पहले भी केंद्र को समयसीमा के भीतर राज्य का दर्जा बहाल करने का निर्देश दिया था, लेकिन हाल की घटनाओं ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और इसका महत्व
सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर में हाल की घटनाएं, खासकर पहलगाम में हुआ आतंकी हमला, इस फैसले को प्रभावित कर सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जमीनी स्थिति को ध्यान में रखे बिना कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता। इस टिप्पणी ने सोशल मीडिया पर खासी चर्चा बटोरी है, जहां कुछ लोग इसे केंद्र सरकार के लिए समर्थन के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे जम्मू-कश्मीर की मांगों पर एक सवाल के रूप में देखते हैं।
केंद्र सरकार का रुख
केंद्र सरकार ने पहले कहा था कि जम्मू-कश्मीर को उचित समय पर राज्य का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन सुरक्षा और प्रशासनिक स्थिरता को प्राथमिकता दी जा रही है। पहलगाम की घटना के बाद, सरकार ने क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी अभियानों को और तेज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अब केंद्र को आठ सप्ताह का समय दिया है, जिसमें उसे अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। यह अवधि इस मामले में भविष्य की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण होगी।
जम्मू-कश्मीर की जनता की उम्मीदें
जम्मू-कश्मीर के लोगों में पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली को लेकर मिश्रित भावनाएं हैं। कुछ लोग इसे क्षेत्र की स्वायत्तता और विकास के लिए जरूरी मानते हैं, जबकि अन्य का मानना है कि सुरक्षा स्थिति को देखते हुए अभी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा ही बेहतर है। पहलगाम की घटना ने इन चर्चाओं को और हवा दी है, और लोग सुप्रीम कोर्ट के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं।

आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई आठ सप्ताह बाद तय की है, जब केंद्र सरकार अपना जवाब दाखिल करेगी। तब तक, जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा स्थिति और राजनीतिक माहौल पर सभी की नजर रहेगी। क्या पहलगाम की घटना इस मांग को और पीछे धकेल देगी, या केंद्र और कोर्ट मिलकर कोई समाधान निकालेंगे? यह देखना दिलचस्प होगा।
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