भारत का होगा अपना अंतरिक्ष स्टेशन: ISRO की नई उड़ान और भविष्य की योजनाएं
भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में तेजी से नई ऊंचाइयों को छू रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने हाल ही में राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस 2025 के अवसर पर नई दिल्ली के भारत मंडपम में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antariksh Station – BAS) के पहले मॉड्यूल BAS-01 का मॉडल प्रदर्शित किया। यह कदम भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में ला खड़ा करता है, जो अपने स्वयं के अंतरिक्ष स्टेशन का संचालन करते हैं। इस लेख में हम भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की विशेषताओं, इसकी निर्माण योजना, और इसके वैज्ञानिक व व्यावसायिक महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन: एक ऐतिहासिक कदम
भारत का अंतरिक्ष स्टेशन, जिसे भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) नाम दिया गया है, 2035 तक पूरी तरह से तैयार होने की उम्मीद है। इसरो की योजना 2028 तक इसके पहले मॉड्यूल BAS-01 को पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) में स्थापित करने की है, जो 450 किलोमीटर की ऊंचाई पर चक्कर लगाएगा। यह मॉड्यूल 10 टन वजनी होगा और 3.8 मीटर चौड़ा तथा 8 मीटर लंबा होगा। इस परियोजना की कुल लागत लगभग 20,000 करोड़ रुपये आंकी गई है, और यह भारत की अंतरिक्ष तकनीक में आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनेगा।
वर्तमान में विश्व में केवल दो सक्रिय अंतरिक्ष स्टेशन हैं: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS), जिसे अमेरिका, रूस, जापान, यूरोप और कनाडा संयुक्त रूप से संचालित करते हैं, और चीन का तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन। BAS के साथ, भारत इस विशेष क्लब में शामिल होने वाला तीसरा देश होगा।
BAS-01 की विशेषताएं: स्वदेशी तकनीक का कमाल
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का पहला मॉड्यूल BAS-01 अत्याधुनिक स्वदेशी तकनीकों से लैस होगा। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- पर्यावरण नियंत्रण और जीवन समर्थन प्रणाली (ECLSS): यह प्रणाली अंतरिक्ष यात्रियों को सांस लेने योग्य हवा, पानी, और उचित तापमान प्रदान करेगी।
- भारत डॉकिंग सिस्टम और बर्थिंग मैकेनिज्म: यह अन्य अंतरिक्ष यानों को स्टेशन से जोड़ने और अलग करने में सक्षम होगा।
- स्वचालित हैच सिस्टम: दरवाजों को खोलने और बंद करने की प्रक्रिया को आसान बनाएगा।
- व्यूपोर्ट्स: वैज्ञानिक इमेजिंग और अंतरिक्ष यात्रियों के मनोरंजन के लिए विशेष खिड़कियां।
- सुरक्षा उपाय: रेडिएशन, तापीय प्रभाव, और सूक्ष्म उल्कापिंडों (MMOD) से सुरक्षा।
- अंतरिक्ष सूट और एयरलॉक: अंतरिक्ष में बाहर निकलने (EVA) के लिए सुविधाएं।
- प्लग एंड प्ले एवियोनिक्स: आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, जो आसानी से अपग्रेड हो सकेंगे।
ये विशेषताएं BAS को न केवल एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला बनाएंगी, बल्कि अंतरिक्ष पर्यटन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए भी एक मंच प्रदान करेंगी।

निर्माण की समयरेखा: 2028 से 2035 तक
इसरो की योजना के अनुसार, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण पांच मॉड्यूल्स के माध्यम से होगा, जिन्हें LVM3 रॉकेट के जरिए 2028 से 2035 के बीच प्रक्षेपित किया जाएगा। कुल 52 टन वजन वाला यह स्टेशन पूरी तरह से चालू होने पर अंतरिक्ष यात्रियों को 3-6 महीने तक रहने की सुविधा प्रदान करेगा। पहला मॉड्यूल BAS-01 2028 में लॉन्च होगा, जो पूरे स्टेशन की नींव रखेगा। इसके बाद, शेष चार मॉड्यूल्स को अगले सात वर्षों में जोड़ा जाएगा, जिससे 2035 तक स्टेशन पूर्ण रूप से कार्यात्मक हो जाएगा।
इसरो ने दिसंबर 2024 में SpaDeX (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट) मिशन के साथ अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक में सफलता हासिल की थी, जो इस परियोजना के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह तकनीक मॉड्यूल्स को आपस में जोड़ने और अंतरिक्ष में दीर्घकालिक मिशनों के लिए आवश्यक है।

BAS के उद्देश्य: विज्ञान से लेकर पर्यटन तक
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं होगा, बल्कि यह विज्ञान, चिकित्सा, और व्यावसायिक क्षेत्रों में भारत की स्थिति को मजबूत करेगा। इसके प्रमुख उद्देश्य हैं:
- माइक्रोग्रैविटी अनुसंधान: कम गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को समझने के लिए मानव शरीर, दवाइयों, और सामग्रियों पर शोध।
- जीवन विज्ञान और चिकित्सा: अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के लिए आवश्यक तकनीकों का परीक्षण, जैसे भोजन, पानी, और ऑक्सीजन की आपूर्ति।
- अंतरग्रहीय खोज: मंगल और चंद्रमा जैसे मिशनों के लिए तकनीकों का विकास।
- अंतरिक्ष पर्यटन: BAS के जरिए भारत अंतरिक्ष पर्यटन के वैश्विक बाजार में प्रवेश करेगा, जिसका मूल्य 2030 तक 13 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की भागीदारी को बढ़ाना।
- युवाओं को प्रेरणा: नई पीढ़ी को अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
चुनौतियां और अवसर
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन परियोजना के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनमें उच्च लागत, तकनीकी जटिलताएं, अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन, और अंतरिक्ष मलबे (स्पेस डेब्रिस) की समस्या शामिल हैं। इसके बावजूद, यह परियोजना भारत के लिए कई अवसर लेकर आएगी। यह मेक इन इंडिया को बढ़ावा देगा और निजी कंपनियों जैसे HAL, BEL, और Tata Advanced Systems को अंतरिक्ष क्षेत्र में भागीदारी का मौका देगा। साथ ही, यह भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में अग्रणी बनाएगा।
भारत का अंतरिक्ष भविष्य
BAS भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम का एक हिस्सा है। इसके अलावा, इसरो कई अन्य मिशनों पर काम कर रहा है, जैसे:
- गगनयान मिशन: 2026 तक भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन।
- चंद्रयान-4: 2028 तक चंद्रमा से नमूने लाने का मिशन।
- शुक्रयान: 2025-26 में शुक्र ग्रह का अध्ययन करने वाला मिशन।
इन मिशनों के साथ, BAS भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान में एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करेगा।
निष्कर्ष
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) भारत की तकनीकी प्रगति और वैज्ञानिक महत्वाकांक्षा का प्रतीक है। 2028 में इसके पहले मॉड्यूल के लॉन्च के साथ, भारत अंतरिक्ष में एक नया इतिहास रचेगा। यह स्टेशन न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतरिक्ष पर्यटन को बढ़ावा देगा, बल्कि युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगा। ISRO की यह पहल भारत को अंतरिक्ष की दुनिया में एक नया मुकाम दिलाएगी, और हमारा तिरंगा अंतरिक्ष में भी शान से लहराएगा।